भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वृक्ष / निधि सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निधि सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

05:14, 6 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

आज काट दिया एक और वृक्ष
महामानव ने
स्वार्थ और विकृत मन की बलि चढ़ा
एक और वृक्ष...

वृक्ष
वो असंख्य पक्षियों का नीड़ रहा
जिसकी गोद में बालक खेले,सधे,धन्य हुए...
जिसके नीचे उत्सव हुए मोद भरे...
जिसकी छाँव में
राम कथाएँ हुईं, कीर्तन हुए
भक्ति के रस बयार बहे
ढोलक खंजरी झालर ढाक बजे...

जो साक्षी था नेह मुग्ध युगलों के
प्रतीक्षारत प्रहरों का...

जिस पर बारिश की बूंदे
गिरती थमती झरती थीं...
जिस पर मैना
प्रेम की अंतहीन छवि गढ़ती थी...

अंधड़ में जो खड़ा रहा वज्र सा
बाहें फैलाये आश्रय देता...

जो हर ख़ुशी में झूमा गाया
बरसाए फूल...
जो हर दुःख में काँपा
रहा मौन...

आज गिरा है
निढ़ाल निश्चल निस्तेज निर्जीव
शोक मना रहे पंछी रो रो कर...

परन्तु रे मानव
तू निर्मोही संवेदनहीन
इन पशु पक्षी की छटपटाहट सुनने
तुझे अपनी ही चेतना में खोना होगा
तुझे महामानव से
पुनः मानव बनना होगा...