"यादें / बीरेन्द्र कुमार महतो" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बीरेन्द्र कुमार महतो |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:14, 10 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
(अपने संघर्षशील पिता को याद करते हुए)
बाबा तुम्हारी आवाज
गुंजती है
खेत-खलिहानों में
लहलहाते खेतों में
कलकल बहते
नदी और झरनों में
हर दिशाओं में
हर कोने में,
हां, गुंजती है
बाबा तुम्हारी आवाज,
हरदम, हर पल, हर क्षण
गुंजता है, हवाओं में
हौले-हौले से
पवन का झोंका सा,
गुंजती है
बाबा तुम्हारी आवाज,
इस पहर से उस पहर तक
सांझ और भोर
हरदम दिलाती है याद
बाबा तुम्हारी आवाज,
गुंजती है
चहुं-दिशाओं में
बच्चों की किलकारियों सा
रह-रह कर तड़पाती
तुम्हारी सुरीली आवाज,
भोर का जगना
अब तो नहीं लगता जगना
क्योंकि, तुम्हारी
वो मीठी, प्यारी आवाज
न जाने कहां, कब
गुम सा हो गया
और न जाने तुम
हमसे रूठ कर
कहां खो गये,
फिर भी
बचा रह गया है
घर के हरेक कोने में
हरेक साजो सामान में
तुम्हारी मीटठी-प्यारी सी आवाज!
हॉं बाबा, तुम्हारी मीटठी-प्यारी सी आवाज..!