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पृथ्वीराज रासो / चंदबरदाई

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|रचनाकार=चंदबरदाई
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<poem>
'''पृथ्वीराज रासो का एक अंश'''
पद्मसेन कूँवर सुघर ताघर नारि सुजान।
ता उर इक पुत्री प्रकट, मनहुँ कला ससभान॥
पद्मसेन कूँवर सुघर ताघर नारि सुजान।<br>ता उर इक पुत्री प्रकट, मनहुँ कला ससभान॥<br><br>ससभान कला सोलह सो बन्निय। बाल वैस, ससि ता समीप अम्रित रस पिन्निय॥
मनहुँ कला ससभान कला सोलह सो बन्निय।<br>बिगसि कमल-स्रिग, भ्रमर, बेनु, खंजन, म्रिग लुट्टिय। बाल वैसहीर, कीर, अरु बिंब मोति, ससि ता समीप अम्रित रस पिन्निय॥<br><br>नष सिष अहि घुट्टिय॥
बिगसि कमल-स्रिगछप्पति गयंद हरि हंस गति, भ्रमर, बेनु, खंजन, म्रिग लुट्टिय।<br>बिह बनाय संचै सँचिय। हीरपदमिनिय रूप पद्मावतिय, कीर, अरु बिंब मोति, नष सिष अहि घुट्टिय॥<br><br>मनहुँ काम-कामिनि रचिय॥
छप्पति गयंद हरि हंस गति, बिह बनाय संचै सँचिय।<br>पदमिनिय रूप पद्मावतिय, मनहुँ काम-कामिनि रचिय॥<br><br>रचिय, रचिय रूप की रास। पसु पंछी मृग मोहिनी, सुर नर, मुनियर पास॥
मनहुँ काम-कामिनि रचियसामुद्रिक लच्छिन सकल, रचिय रूप की रास।<br>चौंसठि कला सुजान। पसु पंछी मृग मोहिनीजानि चतुर्दस अंग खट, सुर नर, मुनियर पास॥<br><br>रति बसंत परमान॥
सामुद्रिक लच्छिन सकलसषियन संग खेलत फिरत, चौंसठि कला सुजान।<br>महलनि बग्ग निवास। जानि चतुर्दस अंग खटकीर इक्क दिष्षिय नयन, रति बसंत परमान॥<br><br>तब मन भयो हुलास॥
सषियन संग खेलत फिरतमन अति भयौ हुलास, महलनि बग्ग निवास।<br>बिगसि जनु कोक किरन-रबि। कीर इक्क दिष्षिय नयनअरुन अधर तिय सुघर, तब मन भयो हुलास॥<br><br>बिंबफल जानि कीर छबि॥
मन अति भयौ हुलासयह चाहत चष चकित, बिगसि जनु कोक किरन-रबि।<br>उह जु तक्किय झरंप्पि झर। अरुन अधर तिय सुघरचंचु चहुट्टिय लोभ, बिंबफल जानि कीर छबि॥<br><br>लियो तब गहित अप्प कर॥
यह चाहत चष चकितहरषत अनंद मन मँह हुलस, उह लै जु तक्किय झरंप्पि झर।<br>महल भीतर गइय। चंचु चहुट्टिय लोभपंजर अनूप नग मनि जटित, लियो तब गहित अप्प कर॥<br><br>सो तिहि मँह रष्षत भइय॥
हरषत अनंद मन मँह हुलस, लै जु तिहि महल भीतर गइय।<br>रष्षत भइय, गइय खेल सब भुल्ल। पंजर अनूप नग मनि जटितचित्त चहुँट्टयो कीर सों, सो तिहि मँह रष्षत भइय॥<br><br>राम पढ़ावत फुल्ल॥
तिहि महल रष्षत भइयकीर कुंवरि तन निरषि दिषि, गइय खेल सब भुल्ल।<br>नष सिष लौं यह रूप। चित्त चहुँट्टयो कीर सोंकरता करी बनाय कै, राम पढ़ावत फुल्ल॥<br><br>यह पद्मिनी सरूप॥
कीर कुंवरि तन निरषि दिषि, नष सिष लौं यह रूप।<br>कुट्टिल केस सुदेस पोहप रचयित पिक्क सद। करता करी बनाय कैकमल-गंध, वय-संध, यह पद्मिनी सरूप॥<br><br>हंसगति चलत मंद मंद॥
कुट्टिल केस सुदेस पोहप रचयित पिक्क सद।<br>सेत वस्त्र सोहे सरीर, नष स्वाति बूँद जस। कमलभमर-गंध, वय-संध, हंसगति चलत मंद मंद॥<br><br>भमहिं भुल्लहिं सुभाव मकरंद वास रस॥
सेत वस्त्र सोहे सरीर, नष स्वाति बूँद जस।<br>भमर-भमहिं भुल्लहिं सुभाव मकरंद वास रस॥<br><br> नैनन निरषि सुष पाय सुक, यह सुदिन्न मूरति रचिय।<br>उमा प्रसाद हर हेरियत, मिलहि राज प्रथिराज जिय॥<br><br/poem>