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"ज़िन्दगी ख़राब हो गई / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर

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ज़िन्दगी ख़राब हो गई  
 
ज़िन्दगी ख़राब हो गई  
और बे-हिसाब हो गई I
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और बे- हिसाब हो गई I
  
ख़ार-ख़ार हो गयी थी मैं  
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ख़ार- ख़ार हो गयी थी मैं  
यकबयक गुलाब हो गई ?
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यकबयक गुलाब हो गई  
  
 
ज़ुल्फ़ की घटा खुली अभी  
 
ज़ुल्फ़ की घटा खुली अभी  
हाय , महताब हो गई I
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हाय, महताब हो गई  
  
देखते ही खो गया , उसे  
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देखते ही खो गया, उसे  
इस क़दर शराब हो गई I
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इस क़दर शराब हो गई  
  
दोसतों की बात मान ली  
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दोस्तों की बात मान ली  
साँस भी अज़ाब हो गई I
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साँस भी अज़ाब हो गई  
  
कल तलक दबी-दबी रही  
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कल तलक दबी- दबी रही  
आज इन्कलाब हो गई I
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आज इन्कलाब हो गई  
  
 
शाईरों ने टांक दी चुनर  
 
शाईरों ने टांक दी चुनर  
शाईरी , शबाब हो गई I
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शाईरी, शबाब हो गई  
  
बा-शऊर दिल निकालती  
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बा- शऊर दिल निकालती  
माहरू , कसाब हो गई I
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माहरू, कसाब हो गई  
  
 
‘दीप’ यूँ जगा दिया गया  
 
‘दीप’ यूँ जगा दिया गया  
ख़ाब ख़ाब ख़ाब हो गई I
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ख़ाब ख़ाब ख़ाब हो गई
 
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20:22, 18 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

 
ज़िन्दगी ख़राब हो गई
और बे- हिसाब हो गई I

ख़ार- ख़ार हो गयी थी मैं
यकबयक गुलाब हो गई

ज़ुल्फ़ की घटा खुली अभी
हाय, महताब हो गई

देखते ही खो गया, उसे
इस क़दर शराब हो गई

दोस्तों की बात मान ली
साँस भी अज़ाब हो गई

कल तलक दबी- दबी रही
आज इन्कलाब हो गई

शाईरों ने टांक दी चुनर
शाईरी, शबाब हो गई

बा- शऊर दिल निकालती
माहरू, कसाब हो गई

‘दीप’ यूँ जगा दिया गया
ख़ाब ख़ाब ख़ाब हो गई