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रत्नदीप / श्रीकांत वर्मा

3 bytes removed, 10:18, 21 अप्रैल 2008
गीला एकान्त देख<br>
आँख डबडबाई थी<br>
और व्यथा की नन्हीं नन्ही जल चिड़िया<br>
मुझसे कुछ बोली थी।<br>
मैंने इस सिंधु को—<br>
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