{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसादमृदुल कीर्ती
}}
[[Category:लम्बी रचना]]
[[Category:उपनिषद]]
[[Category:हरिगीतिका]]
'''ॐ'''<br><br>
'''समर्पण'''<br><br>
परब्रह्म को<br>
उस आदि शक्ति को,<br>
:जिसका संबल अविराम,<br>
:मेरी शिराओ में प्रवाहित है|
:उसे अपनी अकिंचनता,<br>
::अनन्यता<br>
एवं समर्पण<br>
से बड़ी और क्या पूजा दूँ ?<br><br>
'''शान्ती मंत्र'''<br>
<span class="upnishad_mantra">
पूर्ण मिदः पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्ण मुदचत्ये,<br>
पूर्णस्य पूर्ण मादाये पूर्ण मेवावशिश्यते<br><br>
</span>
<span class="mantra_translation">
परिपूर्ण पूर्ण है पूर्ण प्रभु, यह जगत भी प्रभु पूर्ण है,<br>
परिपूर्ण प्रभु की पूर्णता से पूर्ण जग सम्पूर्ण है,<br>
उस पूर्णता से पूर्ण घट कर पूर्णता ही शेष है,<br>
परि पूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है।<br>
</span>
* [[मंत्र 1-5 / ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ती]]