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* [[जब से घनश्याम इस दिल में आने लगे / बिन्दु जी]] | * [[जब से घनश्याम इस दिल में आने लगे / बिन्दु जी]] | ||
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* [[अहो! शंकर भोले भगवानहे मेरे घनश्याम! हृदयाकाश पर आया करो / बिन्दु जी]] | * [[अहो! शंकर भोले भगवानहे मेरे घनश्याम! हृदयाकाश पर आया करो / बिन्दु जी]] | ||
* [[मिला है मुझको किस्मत से खयाले रिन्द मस्ताना / बिन्दु जी]] | * [[मिला है मुझको किस्मत से खयाले रिन्द मस्ताना / बिन्दु जी]] | ||
* [[श्याम सुंदर तुझे कुछ मेरी खबर है कि नहीं / बिन्दु जी]] | * [[श्याम सुंदर तुझे कुछ मेरी खबर है कि नहीं / बिन्दु जी]] | ||
* [[तेरा कौन संघाती हरि बिन! / बिन्दु जी]] | * [[तेरा कौन संघाती हरि बिन! / बिन्दु जी]] | ||
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* [[जीवन को मैंने सौंप दिया अब सब भार तुम्हारे हाथों में / बिन्दु जी]] | * [[जीवन को मैंने सौंप दिया अब सब भार तुम्हारे हाथों में / बिन्दु जी]] | ||
* [[यही हरिभक्त सब कहते हैं यही सब ग्रन्थ गाते हैं / बिन्दु जी]] | * [[यही हरिभक्त सब कहते हैं यही सब ग्रन्थ गाते हैं / बिन्दु जी]] |
03:37, 18 अक्टूबर 2016 का अवतरण
मोहन मोहिनी
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रचनाकार | बिन्दु जी |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी, ब्रज, संस्कृत |
विषय | |
विधा | पद |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
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पहला भाग
- हे दयामय दीन पालक अज विमल निष्काम हो / बिन्दु जी
- अधमों के नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद हो / बिन्दु जी
- दशा मुझ दीन की भगवन सम्हालोगे तो क्या होगा / बिन्दु जी
- जिधर मैं देखता हूँ मुझको नज़र वो घनश्याम आ रहा है / बिन्दु जी
- कन्हैया प्यारे दुलारे मोहन बजाओ फिर अपनी प्यारी बंसी / बिन्दु जी
- कृपा करो हम पै श्यामसुंदर ऐ भक्तवत्सल कहने वाले / बिन्दु जी
- हमें निज धर्म पर चलना बताती रोज रामायण / बिन्दु जी
- पुकार सुन लो जरा काली कमली वाले / बिन्दु जी
- है आँख वो जो राम का दर्शन किया करे / बिन्दु जी
- इस अपार संसार सिन्धु में राम नाम आधार / बिन्दु जी
- एक अर्ज मेरी सुन लो दिलदार हे कन्हैया / बिन्दु जी
- बंसी वाले क्यों नहीं आते हमारी आह पर / बिन्दु जी
- रसना निशदिन भज हरि का नाम / बिन्दु जी
- भटका बहुत मन माया में अब हरि से ध्यान लगा लेना / बिन्दु जी
- श्याम चरणों में मन को लगाये जायेंगे / बिन्दु जी
- भज मन तुल्सीदासं भज मन तुलसीदासं / बिन्दु जी
दूसरा भाग
- ओ लला नन्द के तू खबर ले हमारी भला / बिन्दु जी
- अब आ जा रे मुरली वाले झलक दिखा जा / बिन्दु जी
- कन्हैया तुझे एक नज़र देखना है / बिन्दु जी
- मन! अब तो सुमिर ले राधेश्याम / बिन्दु जी
- जगत झूठा नज़र आया / बिन्दु जी
- मिलूँ गर मेरे मन से मन मिलते हो मदनमोहन / बिन्दु जी
- गजब की बाँसुरी बजती थी वृन्दावन बसैया की / बिन्दु जी
- जो करुणाकर तुम्हारा ब्रज में फिर अवतार हो जाए / बिन्दु जी
- क्या ही मजे से बजती है घनश्याम की बंसी / बिन्दु जी
- तेरी कंचन सी काया पल में ढल जाय / बिन्दु जी
- प्रभो मुझको सेवक बनाना पड़ेगा / बिन्दु जी
- बंसी वाले हमारी खबर लेना / बिन्दु जी
- मुझ पर भी दया की कर दो नज़र जरा / बिन्दु जी
- हीरा जैसी श्वांस बातों में बीती जाय रे / बिन्दु जी
- श्याम प्यारे दिलदार अपनी झलक दिखा दो / बिन्दु जी
- जिसकी चितवन का इशारा दिल में है / बिन्दु जी
- दिल तो प्यारा है मगर दिल से प्यारा तू है / बिन्दु जी
- तुमने घनश्याम अधीनों को तारा होगा / बिन्दु जी
- यदि नाथ का नाम दयानिधि है / बिन्दु जी
- मेरा यार यशोदा-कुँवर हो चुका है / बिन्दु जी
- घनश्याम तुझे ढूँढने जायें कहाँ-कहाँ / बिन्दु जी
- मैं घनश्याम को देखता जा रहा हूँ / बिन्दु जी
- ये अर्ज साँवले सरकार हम सुनते हैं / बिन्दु जी
- श्याम तेरी छटा प्यारी जो पिया करते हैं / बिन्दु जी
तीसरा भाग
- रे मुसाफिर जग जंजाल के बीच भटक रहा है / बिन्दु जी
- श्यामसुंदर अब तो हम आशिक तुम्हारे बन गए / बिन्दु जी
- ध्यान घनश्याम का दीवाना बना देता है / बिन्दु जी
- समझो न यह कि आँखें आँसू बहा रही हैं / बिन्दु जी
- जो उस साँवले को सदा ढूंढता है / बिन्दु जी
- गजब का दावा है पापियों का अजीब जिद पर सम्हल रहे हैं / बिन्दु जी
- उम्मीद है कि उनके हम खाकसार होंगे / बिन्दु जी
- मुझसे अधम अधीन उबरे न जाएँगे / बिन्दु जी
- भोले भक्तों के भावों को कैसे भगवन भुलायेंगे / बिन्दु जी
- लड़ गईं लड़ गईं हो अखियाँ लड़ गईं श्यामसुन्दर से / बिन्दु जी
- मन! ग्रहण करो अंतिम उपदेश / बिन्दु जी
- भवसागर का रत्न वही है जिसमें कुछ निर्मलता है / बिन्दु जी
- अब मन भज श्री रघुपति राम / बिन्दु जी
- मेरे राम मुझे अपना लेना / बिन्दु जी
चौथा भाग
- भक्तजन मुदित मन हृदय सुमिरन करो हर हर महादेव / बिन्दु जी
- मन मूरख बोल राधे कृष्ण हरे / बिन्दु जी
- हाँ मेरी आँखों में वही दिलदार है / बिन्दु जी
- ओ पर्दानशीं तेरी शक्ल में मैं ही हूँ / बिन्दु जी
- तरीका अब निराला अपनी सेवा का दिखाएँगे / बिन्दु जी
- दास रघुनाथ का नंदसुत का सखा / बिन्दु जी
- करना कुछ तुझको बिहार आँखों से / बिन्दु जी
- हमारी बार तुम निकले मनमोहन सनम झूठे / बिन्दु जी
- हाजिर सरकार जनों के लिए / बिन्दु जी
- दिखा देते हो जब रुख साँवले सरकार थोड़ा-सा / बिन्दु जी
- छोड़ बैठा है सारा जमाना मुझे / बिन्दु जी
- दरश दिखला दो राजिब नैन / बिन्दु जी
- अब तो सुन लो पुकार ब्रज बसैया कन्हैया मेरे / बिन्दु जी
- अफ़सोस मूढ़ मन तू मुद्दत से सो रहा है / बिन्दु जी
- हमारे मन हरी सुमिरन धन भावे / बिन्दु जी
- रे मन! ये दो दिन का मेला रहेगा / बिन्दु जी
- कहता है ये दौलत कभी आएगी मेरे काम / बिन्दु जी
- मोहन प्रेम बिना! मिलता नहीं चाहे करले कोटि उपाय / बिन्दु जी
- जग में सुंदर है दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम / बिन्दु जी
पाँचवाँ भाग
- अहो उमापति अधीन भक्त की व्यथा हरो / बिन्दु जी
- अजब है यह दुनिया बाजार / बिन्दु जी
- मैं घनश्याम का बाबला हो रहा हूँ / बिन्दु जी
- प्रभो अपने दरबार से अब न टालो / बिन्दु जी
- उल्फ़त नशे का ज़िद सभी सच्चा गुरूर होगा / बिन्दु जी
- घनश्याम तुझसे अर्ज है कुछ ऐसा मेरा सुधार हो / बिन्दु जी
- रे मन मूर्ख कब तक जग में जीवन व्यर्थ बिताएगा / बिन्दु जी
- न किया जिसने भजन राम का वो नर कैसा / बिन्दु जी
- खबर क्यों न लेंगे मेरी नंदकुमार / बिन्दु जी
- क्यों ये कहते हो घनश्याम आते नहीं / बिन्दु जी
- तूने किया न हरि का ध्यान जग में जन्म व्यर्थ ही बीता / बिन्दु जी
- कृष्ण प्यारे को तूने नहीं जाना रे! / बिन्दु जी
- प्रबल प्रेम के पाले पड़कर प्रभु को नियम बदलते देखा / बिन्दु जी
- घनश्याम जिसे तेरा जलवा नज़र आता है / बिन्दु जी
- पाप लाखों के जो तू हर गया बंशी वाले / बिन्दु जी
छठा भाग
- जिस पर ये दिल फ़िदा है दिलदार वो है निराला / बिन्दु जी
- नक्शा है दिल तस्वीर घनश्याम की / बिन्दु जी
- भक्त बनता हूँ मगर अधमों का सिरताज भी / बिन्दु जी
- सच पूछो तो मुझको नहीं है ज्ञान तुम्हारा / बिन्दु जी
- बैठे कहाँ रूठ के ब्रजधाम बसैया / बिन्दु जी
- कोशिश हजार कर के भी ढूंढें जो उम्र भर / बिन्दु जी
- अड़ा हूँ आज इस दिल पै कि कुछ पा के हटूँ / बिन्दु जी
- जग असार में सार रसना हरि-हरि बोल / बिन्दु जी
- जलवा-ए-यार है कहाँ जख्मी दिलो जिगर में है / बिन्दु जी
- ये न कहना कि अजी क्या है भला चोरी में / बिन्दु जी
- या तो जादू तुझे श्याम हुनर आता है / बिन्दु जी
- विरही की विरह वेदनाएँ सुनकर भी भूल जाते हो / बिन्दु जी
- सभी तुझसे कहते हैं हाल अपना-अपना / बिन्दु जी
- हिन्दू कुल का है सम्मान श्री गोविन्द और गौ से / बिन्दु जी
- कौन है गुलशन कि जिस गुलशन में रौशन तू नहीं / बिन्दु जी
- संसार के करतार का साकार न होता / बिन्दु जी
- है प्रेम जगत में सार और सार कुछ नहीं / बिन्दु जी
- वही प्यारा है जिसका हुस्न हर दिल को हिलाता हो / बिन्दु जी
- चाहे मैं भूलूँ तो भूलूँ मोहन! तू मत मुझको भूल / बिन्दु जी
सातवाँ भाग
- रे मन! द्रुति श्वांस पुकार रही जय राम हरे घनश्याम हरे / बिन्दु जी
- न मैं घनश्याम तुमको दुःख से घबराकर छोडूंगा / बिन्दु जी
- हमेशा दीनों को छोड़कर भी लुभा जो करते हो चार बातें / बिन्दु जी
- तुम्हारी कृपा है तो दुश्मन का डर क्या / बिन्दु जी
- भजन श्यामसुंदर का करते रहोगे / बिन्दु जी
- गुलाम गर्चे खता बेशुमार करते हैं / बिन्दु जी
- कुछ दशा अनौखी उनकी बतलाते हैं / बिन्दु जी
- सुघर साँवले पर लुभाए हुए हैं / बिन्दु जी
- पर प्रेम की इस दिल में लगी घात न होती / बिन्दु जी
- श्रीराम धुन में जब तक मन तू मगन न होगा / बिन्दु जी
- हे नाथ! दयावानों के सिरमौर / बिन्दु जी
- क्या वह स्वभाव पहला सरकार अब नहीं है / बिन्दु जी
- जिससे ब्रजमंडल का मन गोपाल मनमोहन में है / बिन्दु जी
- कैद दुनिया जिस अजब जादू की है टोने की है / बिन्दु जी
- बहुत दिन से तारीफ़ सुनकर तुम्हारी / बिन्दु जी
- वो जाने श्याम कि नजरों के मजे कस-कस के / बिन्दु जी
- जब से घनश्याम इस दिल में आने लगे / बिन्दु जी
- कृपा की न होती जो आदत तुम्हारी / बिन्दु जी
आठवाँ भाग
- अहो! शंकर भोले भगवानहे मेरे घनश्याम! हृदयाकाश पर आया करो / बिन्दु जी
- मिला है मुझको किस्मत से खयाले रिन्द मस्ताना / बिन्दु जी
- श्याम सुंदर तुझे कुछ मेरी खबर है कि नहीं / बिन्दु जी
- तेरा कौन संघाती हरि बिन! / बिन्दु जी
- जीवन को मैंने सौंप दिया अब सब भार तुम्हारे हाथों में / बिन्दु जी
- यही हरिभक्त सब कहते हैं यही सब ग्रन्थ गाते हैं / बिन्दु जी
- तोलने बैठा हूँ मैं आज / बिन्दु जी
- न यज्ञ साधन न तप क्रियाएँ / बिन्दु जी
- हे नाथ!! पद कमल का मुझको पराग करना / बिन्दु जी
- जब दर पे तुम्हारे ही अधमों का ठिकाना है / बिन्दु जी
- दो शुभ संगति दीन दयाल / बिन्दु जी
- बसहु मन! मनमोहन के पाँव! / बिन्दु जी
- हरि बोल मेरी रसना घड़ी-घड़ी / बिन्दु जी
- मस्ती में हमारी भी जो परवाह नहीं करते / बिन्दु जी
- वो खुशकिस्मत है जिसका श्यामसुन्दर से लगा दिल हो / बिन्दु जी
- श्याम मनहर से मन को लगाया नहीं / बिन्दु जी
- क्या कहूँ मन मन्दिर की बात / बिन्दु जी
नौवाँ भाग
- मातेश्वरी तू धन्य है मातेश्वरी तू धन्य है / बिन्दु जी
- जो तू चाहे कि श्याम को / बिन्दु जी
- कुछ अनोखा वो मेरे नन्द का लाला निकला / बिन्दु जी
- घनश्याम हमारा मनमोहन कुछ दोस्त है कुछ उस्ताद भी है / बिन्दु जी
- आन पड़ी मझधार कृष्ण नाव मेरी / बिन्दु जी
- श्याम तोरी नेह नगरिया न्यारी / बिन्दु जी
- मेरे और मोहन के दरम्यान होकर / बिन्दु जी
- प्रभो दो वही पीड़ामय प्यार / बिन्दु जी
- घनश्याम ये तुझपर मेरा मस्ताना हुआ दिल / बिन्दु जी
- जो श्याम पर फ़िदा हो / बिन्दु जी
- यह तमन्ना है कि घनश्याम का शैदा बन जाऊँ / बिन्दु जी
- यूँ मधुर मुरली बजी घनश्याम की / बिन्दु जी
- सदा श्याम-श्यामा पुकारा करेंगे / बिन्दु जी
- यूँ अगर आप मोहन मुकर जाएँगे / बिन्दु जी
- अगर घनश्याम का दिल / बिन्दु जी
- मेरी और मोहन की बात मैं जानूँ या वो जाने / बिन्दु जी
- दृग तीर तेरे मोहन! जिस दिल को ढूँढते हैं / बिन्दु जी
- बताऊँ श्याम तुम्हें मैं क्या कि क्या हूँ / बिन्दु जी
दसवाँ भाग
- जय-जय बिन्दु और ब्रजनंदन / बिन्दु जी
- जिसने घनश्याम तेरे प्रेम का अरमान लिया / बिन्दु जी
- ये झगड़ा है मोहन हमारा तुम्हारा / बिन्दु जी
- योगी न अती आकिलो दाना न बना दे / बिन्दु जी
- लगन श्याम से यूं लगाया करें हम / बिन्दु जी
- यही नाम मुख में हो हरदम हमारे / बिन्दु जी
- जिस दर पै ठिकाना है वह दर कभी न ढूँढा / बिन्दु जी
- जो नहिं प्रेम प्याला पिया / बिन्दु जी
- कन्हैया को एक रोज रोकर पुकारा / बिन्दु जी
- धर्मों में सबसे बढकर हमनें ये धर्म जाना / बिन्दु जी
- हिन्द में प्रति वर्ष आती है नवमी राम की / बिन्दु जी
ग्यारहवाँ भाग
- हमारे दोनों एक धनी / बिन्दु जी
- अब हम मोहन से अनुरागे / बिन्दु जी
- मन की मन में रहनी चाहिए / बिन्दु जी
- मोहन हम भी तुमसे रूठे! / बिन्दु जी
- लगन उनसे अपनी लगाए हुए हैं / बिन्दु जी
- रूठे हैं अगर श्याम तो उनको मनाए कौन? / बिन्दु जी
- अब तो गोविन्द गुण गा ले / बिन्दु जी
- श्याम सुंदर को बस एक नज़र देख ले / बिन्दु जी
- तोता मैना प्रश्नोत्तरी / बिन्दु जी
- प्रेम ही है अपना सिद्धांत / बिन्दु जी
- हाँ मेरा मोहन मुरली वाला / बिन्दु जी
- कराल कलिकाल में जो तेरा / बिन्दु जी
- जाता कभी स्वभाव न खल का / बिन्दु जी
- सदा अपनी रसना को रसमय बनाकर / बिन्दु जी
- पतझड़ न खिज़ां है न गर्द ओ गुबार है / बिन्दु जी