भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खदकैत रही रसमे / जीवकान्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जीवकान्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMaithil...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:49, 21 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण

माटि होइत अछि दू रंग
रौद पकै छै एक स्वाद एक रंग
पानिमे सिझाइ छै एक गन्ध एक रंग
माटि रखैत अछि मञ्जूषामे बीज
जोगबैत अछि प्राण
अपन दुनु रंगकेँ सनैत अछि
आ प्राणकेँ दीप्त करबाक उत्सवमे
सातो रंग पहिरैत अछि

हम चाहैत रही
जे माटिक रसकेँ जीबी
उसर्गि दी निन्न
तेयागि दी अपना रसकेँ पकएबाक बेगरता
हम ओकर रसमे
रहलहुँ अछि खदकैत
ओ हमर स्रोत हमर आदान
हमर समस्त बाट जाइत अछि निच्चाँ
जाइत अछि माटि दिस
पछिला खेप आब नहि अछि मोन
अगिला खेप लेल
एतबे अछि मोन
खदकैत रही रसमे
आधा तापमे
आधा जलमे