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"प्रतिरोध / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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वह शान्ति की अपील करता है
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वह उतना अधिक भयग्रस्त है
  
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मैं निहत्था और अकेला हूँ
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कोई डर नहीं
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पर, हिम्मत है
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कोई डर नहीं
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ताप कहीं से भी मिल सकता है
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पर, आँच सदैव भीतर से आती है
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जैसे  पहली बारिश में
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बर्फ से
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22:54, 1 जनवरी 2017 का अवतरण

दहशत का बाज़ार गर्म है
पूरी दुनिया में
इधर से उधर तक फैला है
मज़े की बात यह है
जो असलहों का व्यापारी है
वह शान्ति की अपील करता है
जो जितना बड़ा दहशतगर्द है
वह उतना अधिक भयग्रस्त है

मैं निहत्था और अकेला हूँ
कोई डर नहीं
पर, भरोसा है
मधुमक्खियाँ निश्चिंत होकर
छतों से बाहर आती हैं
कोई डर नहीं
पर, हिम्मत है
लाजवन्ती अनचाहे स्पर्श से पूर्व
मुरझा जाती है
कोई डर नहीं
पर, सामर्थ्य है

प्रतिरोध इन्कार करने से ही नहीं होता
प्रतिरोध बेकार करने से भी होता है

ताप कहीं से भी मिल सकता है
पर, आँच सदैव भीतर से आती है
जैसे पहली बारिश में
ज़मीन से
बर्फ से
शब्द की धार से