भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"केनोपनिषद / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुल कीर्ति }} Category:लम्बी रचना Category:उपनिषद [[Category:हरिगीत...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
नेत्र , श्रोत्रम, प्राण , वाणी , बल इन्द्रियों में महान हों।<br> | नेत्र , श्रोत्रम, प्राण , वाणी , बल इन्द्रियों में महान हों।<br> | ||
उपनिषदों में प्रतिपाद्य ब्रह्म से, गहन मम सम्बन्ध हों,<br> | उपनिषदों में प्रतिपाद्य ब्रह्म से, गहन मम सम्बन्ध हों,<br> | ||
− | हो त्रिविध तापों की | + | हो त्रिविध तापों की निवृत्ति, परब्रह्म तत्त्व प्रबंध हों॥<br><br> |
</span> | </span> | ||
01:12, 5 मई 2008 का अवतरण
ॐ श्री परमात्मने नमः
शान्ति पाठ
हे ईश ! मेरे अंग सब परिपूर्ण और बलवान हों,
नेत्र , श्रोत्रम, प्राण , वाणी , बल इन्द्रियों में महान हों।
उपनिषदों में प्रतिपाद्य ब्रह्म से, गहन मम सम्बन्ध हों,
हो त्रिविध तापों की निवृत्ति, परब्रह्म तत्त्व प्रबंध हों॥