भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पिता और लड़की / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:14, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
लड़की बड़ी हो रही है
पिता को डर लग रहा है
दहलीज़ पर खड़ी लड़की
पाँव बाहर रखने को है
और भीतर आने को है
उसका इच्छा-संसार
लड़की कुछ नहीं जानती अपने बारे में
वह तो बस
पतंग होना चाहती है
या फिर मछली
लड़की ढूँढ़ रही है
इस ऋतु का सबसे सुन्दर फूल
लड़की नहीं पूछती
किसी भी टीवी विज्ञापन का अर्थ
लड़की अब व्याकुल नहीं होती
पिता को डर लग रहा है
लड़की अपने बड़े होने से बेख़बर है
मगर जानती है
कि वह पार कर लेगी
किसी भी सड़क को
पिता पिता है
और सिर्फ़ वही जानता है
व्यस्त, खु़दगर्ज़ और पागल
सड़क को पार करने का जोखि़म।