भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुंदर बरसात / श्रीप्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:50, 20 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
आई है सुंदर बरसात, जरा देखो तो
लगती है अब बिलकुल रात, जरा देखो तो
उमड़ घुमड़कर बादल आए हैं
आसमान में आकर छाए हैं
मेंढकों की ये बारात, जरा देखो तो
आई है सुंदर बरसात, जरा देखो तो
मोरों ने अपने पर फैलाकर
नाचना शुरू किया है गा-गाकर
रूमझूम थिरक रहे गात, जरा देखो तो
आई है सुंदर बरसात, जरा देखो तो
झींगुर की झनझन झनकार मधुर
मेंढक की मीठी लगती टर-टर
मुसकाते पेड़ों के पात, जरा देखो तो
आई है सुंदर बरसात, जरा देखो तो
घास में आई है जान, उग आई है
धरती पर सभी ओर, हरियाली छाई है
बरसा लाई है सौगात, जरा देखो तो
आई है सुंदर बरसात, जरा देखो तो
सूखी धरती ने जीवन पाया
जन-जन ने बरसा मंगल गाया
अच्छी है बरसा की बात, जरा देखो तो
आई है सुंदर बरसात, जरा देखो तो।