भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विडम्बना-2 / विनोद शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शब्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:08, 15 मार्च 2017 के समय का अवतरण
भाषण के अंत में मैंने कहा
‘बहादुरी ’ के नाम पर
असाध्य रोग से जूझते हुए
निरंतर घोर यातनाएं झेलते रहने की विवशता
ढोते रहना
कहां की अक्लमंदी है?
आत्महत्या कीजिए
या सुखमृत्यु की शरण में जाइए
और बीमारी से मुक्ति पाइए
श्रोताओं में मौजूद
सयानों ने कहा- ‘आत्महत्या कायरता है
खुद का खुद से करवाता है खून
बेकाबू हो जाए अगर जुनून’
धर्मगुरुओं ने कहा- ‘पाप है, घोर पाप!
बाप रे बाप!’
बुद्धिजीवियों ने कहा-‘इजाजत नहीं देता कानून गुड आफ्टरनून’
दर्द से मुक्ति की कोशिश को
कायरता, पाप और अपराध की संज्ञा देना
नैतिक अपराध नहीं तो और क्या है?
इस संगीन अपराध के लिए
जिम्मेदार कौन है?
मैंने जब से यह पूछा है
देश के सबसे बड़े कानूनविद से
तभी से वह मौन है।