भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वे कहते हैं / रमेश आज़ाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश आज़ाद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:45, 21 मार्च 2017 के समय का अवतरण

वे कहते हैं
बुन रहा हूं धोती
पर बुना जा रहा होता है ध्वज,
वे कहते हें
बुन रहा हूं चादर
पर बुनी जा रही होती है रामनामी।
वे उपेक्षित कबीरपंथी भी जुलाहे नहीं
कपड़ा मिल के मालिक हैं,
वे
कुछ भी बुन सकते हैं
बुनवा सकते हैं।
बुनना-बुनवाना
पेशा है उनका
अपनी भूख के लिए बुनकर
सबकी भूख
वे चढ़ जाते हैं
गुम्बद पर
ध्वजा लिए
रामनामी ओढ़े
जय-जयकार गूंजती है
दिग-दिगंत में
किसी की बेटी-रोटी की नहीं
राम, बाबर की नहीं,
दिल्ली की राजगद्दी के लिए!...
अवतारधारी पुरुष हैं वे
उपेक्षित कबीरपंथी जुलाहे नहीं।