भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अलसुबह / कर्मानंद आर्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कर्मानंद आर्य |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:31, 30 मार्च 2017 के समय का अवतरण
सुनो यक्षिणी!
लड़ाई झगड़े तो होते रहते हैं
होने भी चाहिए
बहुत जरुरी है वाजिब प्रतिरोध
एक की संप्रभुता के बरक्स
जब कोई एक उठाता है आवाज
कोई कुंठित पीड़ित
उसे मिला लेता है
किसी और एक के सुर के साथ
तभी पैदा होती है क्रांति
बहुत जरुरी है
प्रतिरोध
एकान्मुखता रोकने के लिए
वाजिब क्रांति
सुनो!
लड़ाई झगड़े होते रहते हैं
खुद से प्रेम होना जरुरी है
हमें भीतर के झगड़े
भीतर ही निपटाने होंगे
सुनो यक्षिणी!
भोर का समय हो गया है