भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बाघ आया उस रात / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नागार्जुन }} ''वो इधर से निकला उधर चला गया'' वो आँखें फैल...) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
− | + | "वो इधर से निकला | |
− | उधर चला गया | + | उधर चला गया" |
वो आँखें फैलाकर | वो आँखें फैलाकर | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
बतला रहा था- | बतला रहा था- | ||
− | + | "हाँ बाबा, बाघ आया उस रात, | |
आप रात को बाहर न निकलों! | आप रात को बाहर न निकलों! | ||
− | जाने कब बाघ फिर से बाहर निकल जाए! | + | जाने कब बाघ फिर से बाहर निकल जाए!" |
− | + | "हाँ वो ही, वो ही जो | |
उस झरने के पास रहता है | उस झरने के पास रहता है | ||
पंक्ति 35: | पंक्ति 35: | ||
बाघ या तो सोता है | बाघ या तो सोता है | ||
− | या बच्चों से खेलता है ... | + | या बच्चों से खेलता है ..." |
दूसरा बालक बोला- | दूसरा बालक बोला- | ||
− | + | "बाघ कहीं काम नहीं करता | |
न किसी दफ़्तर में | न किसी दफ़्तर में | ||
− | न कॉलेज में | + | न कॉलेज में" |
छोटू बोला- | छोटू बोला- | ||
− | + | "स्कूल में भी नही ..." | |
पाँच-साला बेटू ने | पाँच-साला बेटू ने | ||
पंक्ति 53: | पंक्ति 53: | ||
हमें फिर से आगाह किया | हमें फिर से आगाह किया | ||
− | + | "अब रात को बाहर होकर बाथरुम न जाना" |
01:05, 28 मई 2008 का अवतरण
"वो इधर से निकला
उधर चला गया"
वो आँखें फैलाकर
बतला रहा था-
"हाँ बाबा, बाघ आया उस रात,
आप रात को बाहर न निकलों!
जाने कब बाघ फिर से बाहर निकल जाए!"
"हाँ वो ही, वो ही जो
उस झरने के पास रहता है
वहाँ अपन दिन के वक्त
गए थे न एक रोज़?
बाघ उधर ही तो रहता है
बाबा, उसके दो बच्चे हैं
बाघिन सारा दिन पहरा देती है
बाघ या तो सोता है
या बच्चों से खेलता है ..."
दूसरा बालक बोला-
"बाघ कहीं काम नहीं करता
न किसी दफ़्तर में
न कॉलेज में"
छोटू बोला-
"स्कूल में भी नही ..."
पाँच-साला बेटू ने
हमें फिर से आगाह किया
"अब रात को बाहर होकर बाथरुम न जाना"