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"307 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर
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चल जोगीया असीं विखा लयाईए जिथे त्रिंजणी छोहरियां गांदियां ने
लै के जोगी नूं आन विखाइयो ने इके वहुटियां छोप<ref>लड़कियों के मिलकर कातने को छोप कहते हैं</ref> पांदियां ने
इक नचदियां मसत मलंग बनके इक सांग झुहेटी दा लांदियां ने
रंग दी हेम महीन करके वारस शाह नूं गीत सुनांदियां ने
शब्दार्थ
<references/>