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"411 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर

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बोली हीर मियां पा खाक<ref>चरन-धूल</ref> तेरी पिछे टुटियां असीं परदेसनां हां
पयारे विछड़े चोप<ref>खुशी</ref> ना रही काई लोकां वांग ना मिठियां मेसनां हां
असीं जोगीया पैरां दी खाक तेरी नहीं झूठियां ते मल खेसनां हां
नाल फकर दे करां बराबरी कयों असींजटियां हां कि कुरेसनां<ref>कुरैश हज़रत मुहम्मद के कबीले का नाम</ref> हां

शब्दार्थ
<references/>