भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"445 / हीर / वारिस शाह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:15, 5 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण
आ सहतीए वासता रब्ब दा ई नाल भाबियां दे मिठा बोलीए नी
होईए पीड़ वंडावड़े शहदियां दे जहर बिछूआं वांग ना घोलीए नी
कम बंद होवे परदेसियां दा नाल मेहर दे गंड नूं खोलीए नी
तेरे जही ननान हो मेल करनी जिऊ जान भी उस तों घोलीए नी
जोगी चल मनाईए बाग विचों हथ बन्न के मिठड़ा बोलीए नी
जो कुझ कहे सो सिरे ते मन लईए गमी शादियों मूल ना डोलीए नी
चल नाल मेरे तूं तां भाग भरीए मेल करनीए विच वचोलीए नी
वारस शाह मेरा ते रांझे दा मेल होवे खंड दुध दे विच चा घोलीए नी
शब्दार्थ
<references/>