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कोयल / हरिवंशराय बच्‍चन

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देखेगी ऋतुपति-प्रियतम के शुभागमन का बाट।<br><br>
करेगी करेगा आकर मंद समीर<br>
बाल-पल्लव-अधरों से बात,<br>
ढँकेंगी तरुवर गण के गात<br>
सुना उनको निज गुन-गुन गान,<br>
मधु-संचय करने में होंगी तन-मन से संलग्न !<br>
 
नयन खोले सर कमल समान,<br>
बनी-वन का देखेंगे रूप—<br>
गंधर्वों के वाद्य-यंत्र किन्नर के मधुर अलाप।<br><br>
इन्द इन्द्र अपना इन्द्रासन त्याग,<br>
अखाड़े अपने करके बंद, <br>
परम उत्सुक-मन दौड़ अमंद,<br>
खोलेगा सुनने को नंदन-द्वार भूमि का राग !<br><br>
करेगी मत्त मत्‍त मयूरी नृत्य <br>
अन्य विहगों का सुनकर गान,<br>
देख यह सुरपति लेगा मान,<br>
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