"शहर में मृत्यु / दिनेश जुगरान" के अवतरणों में अंतर
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16:24, 12 मई 2017 के समय का अवतरण
तुम क्यों आए हो दौड़ते हुए इस शहर में जो अक्सर
बन्द रहता है
शायद तुम्हें मालूम नहीं बरसों पहले तालाब के किनारे जब तुम
एक पुराना गीत गुनगुना रहे थे यहाँ आकर मैं मर चुका हूँ
वैसे यह शहर अच्छा है हवाओं में झूमता बार-बार ऊँची-ऊँची
दीवारों पर लगे शीशों पर चमकती है सूरज की रोशनी लेकिन
सड़कों पर निकलने के लिए एक सरकारी मुहर लगा काग़ज़ लेना पड़ता है
तुम खू़ब रख दो अपनी रूह उनके क़दमों पर तुम्हारी ही आवाज़
गूंजेगी उन वीरान सड़कों पर जहाँ थोड़ी देर पहले तलवार की
झनझनाहट से (एक ज़ोरदार विस्फोट से) कुछ मुर्दा जिस्म पड़े हैं
जिन्हें परिन्दे नोच खाने को तैयार हैं
यहाँ तुम बच न पाओगे अगर तुम नहीं मिले तो हो जाएगा
तुम्हारे साए का कत्ल और तुम्हें दफना कर एक गिनती में शामिल
कर लिया जाएगा
सुविधा अनुसार बदलते कानूनवाले इस शहर में तुम्हारा क्या काम
यहाँ धूप तो निकलती है लेकिन किसी चाबुक की तरह उधेड़
देती है जिस्म की चमड़ी को
तुमने शायद बम से उठते आग के गोले को नहीं देखा है जब
मौत छिपती फिरती है दरवाज़ों के पीछे
और नन्हें-नन्हें हाथ छिटक कर दूर गिरते हैं जिस्मों से अलग
इस शहर में जीवन और मृत्यु दोनों के भय से कांपती सड़कों
पर तुम्हारी प्रतीक्षाएँ कभी भी सच्चाइयाँ नहीं बन पाएँगी
अभी समय है तुम दौड़ते हुए गाँव वापस चले जाओ