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"बिना सहारे / तेज प्रसाद खेदू" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=जीत नराइन
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|रचनाकार=तेज प्रसाद खेदू
 
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14:52, 24 मई 2017 के समय का अवतरण

बिना सहारे हमने
बीते हुए समय को मुट्ठी में
कैद कर रखा है।
और आसमान की ओर देखते हुए
चुपचाप बैठे हैं।
हम कुछ सोचते हैं
पर कह नहीं पाते।
और व्यक्त हो जात हैं वे जिनका
कोई वास्ता नहीं होता।
हम जब हँसना चाहते हैं।
तब आस-पास का माहौल देखकर
हमारी आँखों में छल-छला आता है पानी।
और हम एक मशीन की तरह
पूरी करते रहते हैं
अपनी दिनचर्या
निभाते रहते हैं
अपना दायित्व
और मुट्ठी में कैद
बीतता रहता है समय
चुप-चाप।