भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निराशा / नवीन ठाकुर 'संधि'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन ठाकुर 'संधि' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:51, 27 मई 2017 के समय का अवतरण

जखनी लागै छेलै आमोॅ में मंजर टिकोला,
तखनी नै लागै छेलै मैना, कौआ, कोकिला।

जवेॅ आम हुअेॅ लागलै लाल,
तबेॅ बरसेॅ लागलै ओकरा पर काल
जबेॅ आम पाकी गेलै,
तबेॅ ओकरा पर कौआ लागी गेलै।
मारेॅ लागलै लोल नुकीला।
जखनी लागै छेलै आमोॅ में मंजर टिकोला।

निसहाय आम बेचारा,
कुछूँ नै चलै ओकरोॅ चारा।
आम पावी केॅ चोट
कत्तेॅ छै आदम के जाति में खोट
सोचेॅ हमरोॅ माथा पर मारै छै बसुला।
जखनी लागै छेलै आमोॅ में मंजर टिकोला।

सब्भेॅ रस गिरी गेलै टपकी केॅ,
मैना कौवा टुक-टुक देखै फफकी केॅ।
दःुखित कौआ मैना उड़ी गेलोॅ,
आम भी ‘‘संधि’’ सड़ी गेलोॅ
मैना कौवा रही गेलोॅ होय केॅ बौला।
जखनी लागै छेलै आमोॅ में मंजर टिकोला।