"अजीब तर्ज़े-मुलाक़ात / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
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शबों की सुस्त रावी का तुझे भी शिकवा है<br> | शबों की सुस्त रावी का तुझे भी शिकवा है<br> | ||
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22:39, 30 जून 2008 का अवतरण
अजीब तर्ज-ए-मुलाकात अब के बार रही
तुम्हीं थे बदले हुए या मेरी निगाहें थीं
तुम्हारी नजरों से लगता था जैसे मेरे बजाए
तुम्हारे ओहदे की देनें तुम्हें मुबारक थीं
सो तुमने मेरा स्वागत उसी तरह से किया
जो अफ्सरान-ए-हुकूमत के ऐतक़ाद में है
तकल्लुफ़ान मेरे नजदीक आ के बैठ गए
फिर 1एहतराम से मौसम का जिक्र छेड़ दिया
1आदर
कुछ उस के बाद सियासत की बात भी निकली
अदब पर भी दो चार तबसरे फ़रमाए
मगर तुमने ना हमेशा कि तरह ये पूछा
कि वक्त कैसा गुजरता है तेरा जान-ए-हयात ?
पहर दिन की 2अज़ीयत में कितनी शिद्दत है
उजाड़ रात की तन्हाई क्या क़यामत है
शबों की सुस्त रावी का तुझे भी शिकवा है
गम-ए-फिराक के किस्से 3निशात-ए-वस्ल का जिक्र
रवायतें ही सही कोई बात तो करते.....
2अत्याचार
3मिलन की खुशी