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विदा के बाद प्रतीक्षा / दुष्यंत कुमार
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12:22, 28 जुलाई 2006
पिघले तारकोल में<br>
हवा तक चिपक जाती है बहती बहती,<br>
किन्तु इस
गमीर्
गर्मी
के विषय में किसी से<br>
एक शब्द नही कहता हूँ मैं। <br><br>
Lalit Kumar
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