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"सिर्फ एक शब्द / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

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19:11, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

अपने पैरों के नीचे की
ज़मीन छोड़ कर
वह
आसमान में
बहुत ऊँचा उड़ रहा था

कोई भी तीर
उसको बेंध् नहीं था सकता
कोई भी गोली
उसको छलनी नहीं थी कर सकती
कोई भी गुलेल
उस तक मार नहीं थी करती

लेकिन किसी ने
उसको सिर्फ
‘एक शब्द’ ही कहा
कि वह परकटे पक्षी की तरह
लड़खड़ाता
तिलमिलाता

ज़मीन पर आ गिरा...।