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"ना-रसा / बशर नवाज़" के अवतरणों में अंतर
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कि मैं वो करिश्मा दिखा सकूँ | कि मैं वो करिश्मा दिखा सकूँ | ||
कहीं फूल कोई खिला सकूँ | कहीं फूल कोई खिला सकूँ | ||
कहीं दीप कोई जला सकूँ </poem> | कहीं दीप कोई जला सकूँ </poem> |
14:44, 14 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
मुझे ख़्वाब अपना अज़ीज़ था
सो मैं नींद से न जगा कभी
मुझे नींद अपनी अज़ीज़ है
कि मैं सर-ज़मीन पे ख़्वाब की
कोई फूल ऐसा खिला सकूँ
कि जो मुश्क बन के महक सके
कोई दीप ऐसा जला सकूँ
जो सितारा बन के दमक सके
मेरा ख़्वाब अब भी है नींद में
मेरी नींद अब भी है मुंतज़िर
कि मैं वो करिश्मा दिखा सकूँ
कहीं फूल कोई खिला सकूँ
कहीं दीप कोई जला सकूँ