भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देवदार की तरह / स्वाति मेलकानी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वाति मेलकानी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:53, 5 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
हर दिन
हर ओर फैलता
और
फिर लौट आता
मोटे तने से चिपकी शाख सा
प्रश्नशून्य होकर।
देवदार की तरह
बढ़ रहा है जीवन।
अब नहीं होता विस्मय
नये क्षितिज के
दिख जाने पर।
कितने पतझड़
छुए बिना ही गुजर गये हैं।
और न जाने
कितने अंबर भुला दिये हैं।
देवदार की तरह
बढ़ रहा है जीवन।
बढ़ती उम्र के साथ
निरन्तर घटता विस्तार
और
शाखों की सिमटती परिधि
कहीं नहीं पहुँचती
सिवाय
उस सुदूर
नुकीले सिरे तक
जिसे शीर्ष कहते हैं।