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"भोर / मनीष कुमार गुंज" के अवतरणों में अंतर

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05:24, 18 सितम्बर 2017 के समय का अवतरण

पहिलॉे पहली कामोॅ मेॅ सुरसूरी लागथौंन
आपने से नै करभो ते मजदूरी लोगथौंन।

दुनियाँ मेॅ सुन्दर से सुन्दर दुनियाँ छै
जे भीतर मेॅ वास करै उ नूरी लोगथौंन।

छोटॉे साधन मेॅ छोटोॅ परिवार बनाबोॅ
दर्जन भर बढ़थौन ते कत्ते कूरी लोगथौंन।

मौका छै मजगूत करॉे आपनॉे हाँथो कॅेे
तनठो गलती पेट-पीठ पर छूरी लागथौंन।

औवल बोली चीनी-शक्कर सॅे भी मीट्ठो
उटपुटंगा बात कभी मजबूरी लागथौंन।

स्वार्थ लोभ परिवार बाद ओझराबै बाला
जे जतना भीरी मेॅ ओतने दूरी लागथौंन।