"सदस्य:Jagdishtapish" के अवतरणों में अंतर
Jagdishtapish (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो () |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:59, 30 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
लोग कहते हैं जो दिखता है वही बिकता है
रो रही इंसानियत हंसती यहाँ दरिंदगी है ये किसकी इबादत है ये किसकी बंदगी है।
लोग कहते हैं जो दिखता है वही बिकता है ये दिखावे की जिंदगी भी कोई जिंदगी है ।
दूसरों के ऐब गिनाना बहुत आसां है मगर अपने अंदर कौन झांकता है कितनी गंदगी है ।
सरे बाजार नंगे हो गए वो बेच के शर्मो हया राहगीरों की नज़र में आज तक शर्मिंदगी है ।
है इसका नाम मज़बूरी इसे मर्जी नहीं कहते बच्चों के लिए रूह बेचना भी कोई ज़िंदगी है ।
-हम तो पीने के बाद होश में आते हैं तपिश दो घूंट पी के होश खो देना भी कोई रिँदगी है ।
जगदीश तपिश
ग़ज़ल -
जाने कैसी कैसी रस्में खूब निभाई लोगों ने । आ के मेरे घर में लगाई आग पराई लोगों ने ।
आते जाते नजर मिली थी मुस्कानें भी रस्मी थीं । ना जाने क्यों फिर भी हमपे धूल उड़ाई लोगों ने ।
हमने कब अहसान जताया कब कोई उम्मीद रखी । हंस के हमने टाल दिया पर बात बढ़ाई लोगों ने ।
ना कोई तारीख मुक़र्रर ना मौसम त्यौहारों का । उनकी गली में कत्ल हुए हम ख़ुशी मनाई लोगों ने।
ऐसा क्या गुनाह था मेरा सोच के हम हैरान रहे । कब्र पे आये नसीहत देने नींद उड़ाई लोगों ने ।
जगदीश तपिश चेयरमेन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन[आई जी ओ ]
मध्य प्रदेश /छत्तीसगढ़ राज्य प्रभारी
संपर्क -9406784999