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"पछिया वयार / बिंदु कुमारी" के अवतरणों में अंतर

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झारखण्ड मेॅ जनतंत्र
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मातलोॅ पछियां झकझोरै छै
एक एहिनोॅ तमाशा छै
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झूमैं छै शराबी रं आमोॅ के ठार।
बिकै झिलेबी-बताशा छै
+
गमकै छै चंदन लहकै छै कचनार
जेकरोॅ जान-
+
सरंङोॅ नी बरसै छै, लागलोॅ छै सरंङोॅ मेॅ आगिन।
मदारी के भाषा छै।
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ई मेघराज छै पछियां हवा पेॅ सबार।
मतुर कि हम्मेॅ जानै छियै
+
पछियाँ बतास बहै, झकझोरै छै डार।
हमरोॅ राज्य रोॅ समाजवाद
+
पछिया बतासोॅ सेॅ उखड़ी गेलै
माल गोदाम मेॅ लटकलौ होलोॅ
+
बड़का-बड़का गाछ।
ऊ बाल्टि जुंगा छै
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धरती पर गिरी गेलै
जेकरा पेॅ आग लिखलोॅ रहै छै
+
सोन-चिरैया के घोंसला
आरो होकरा मेॅ पानी, बालू भरलोॅ रहै छै।
+
पक्षी-चिड़ैया कानै मंडरावै
झारखण्ड रोॅ विधान सभा
+
विनाश रोॅ ई सरदैलोॅ छाया।
तेल रोॅ ऊ घानी छेकै
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पसरी गेलै चारों ओर
जेकरा मेॅ आधोॅ तेल छै
+
एक सन्नाटा-खामोश होय गेलै बातावरण।
आरो आधोॅ पानी छै।
+
आरो यही विनाश रोॅ कोखी सेॅ-
नेतां सीनी मनाबै छै
+
जनमै छै एक महाकाव्य।
गाँधी जी रोॅ बरस गॉव
+
आबै बाला हर पल
सब दल रोॅ नेतासीनी
+
ई महाकाव्य मेॅ समाय जाय छै
करै छै साँठ-गाँठ
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जिनगी रोॅ एक-एक पल।
गाँधीजी सेॅ के छै बढ़लोॅ
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एक मिनट के राखोॅ मौन।
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17:49, 2 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

मातलोॅ पछियां झकझोरै छै
झूमैं छै शराबी रं आमोॅ के ठार।
गमकै छै चंदन लहकै छै कचनार
सरंङोॅ नी बरसै छै, लागलोॅ छै सरंङोॅ मेॅ आगिन।
ई मेघराज छै पछियां हवा पेॅ सबार।
पछियाँ बतास बहै, झकझोरै छै डार।
पछिया बतासोॅ सेॅ उखड़ी गेलै
बड़का-बड़का गाछ।
धरती पर गिरी गेलै
सोन-चिरैया के घोंसला
पक्षी-चिड़ैया कानै मंडरावै
विनाश रोॅ ई सरदैलोॅ छाया।
पसरी गेलै चारों ओर
एक सन्नाटा-खामोश होय गेलै बातावरण।
आरो यही विनाश रोॅ कोखी सेॅ-
जनमै छै एक महाकाव्य।
आबै बाला हर पल
ई महाकाव्य मेॅ समाय जाय छै
जिनगी रोॅ एक-एक पल।