गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
रश्मिरथी / चतुर्थ सर्ग / भाग 7
6 bytes removed
,
10:01, 11 अगस्त 2008
किन्तु, अभी तो तुझे देख मन और डरा जाता है,
हृदय सिमटता हुआ आप-ही-आप
मारा
मरा
जाता है.
अतः वत्स! मत इसे चलाना कभी वृथा चंचल हो,
लेना काम तभी जब तुझको और न कोई
बाल
बल
हो.
Anonymous user
202.56.127.82