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"दाग / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर
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जो रात भर बतियाती हैं चाँद से | जो रात भर बतियाती हैं चाँद से | ||
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जल जाते हैं उगे हुए जंगल | जल जाते हैं उगे हुए जंगल | ||
जब गूंजता है समवेत क्रंदन चाँद के कानों में | जब गूंजता है समवेत क्रंदन चाँद के कानों में |
09:59, 12 दिसम्बर 2017 का अवतरण
चाँद पर उभरते दाग पर
सुने होंगे बहुत से वैज्ञानिक विश्लेषण और शोध भी
बहुत सी उपमाएँ साहित्यकारों की
लेकिन कहा एक लड़की ने
वो गढ्ढे बने हैं मेरे आँसुओं से
वहां जमा हुआ है काला नमकीन पानी
ये जो अमावस है धरती के हिस्से की
घना जंगल है ख़ामोशी का
उन चुप्पा लड़कियों की
जो रात भर बतियाती हैं चाँद से
ये जो चाँदनी बरसती है धरा के आँगन
जल जाते हैं उगे हुए जंगल
जब गूंजता है समवेत क्रंदन चाँद के कानों में
एक ठहरी हुई नदी का
निकल आता है अकबका कर बाहर चाँद
डूब जाती है धरती फट जाता है रंग
शोकमग्न चाँद का
नीली चाँदनी का उजला होना
नहीं समझेंगे लोग
नहीं समझेंगे डूब जाने का मतलब
कि जल जाने का मतलब
सिर्फ जिस्म के दाग़ नहीं होते।