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सोंधी माटी में उपजी है
निर्मल पावन प्रीत,
यही मातृभूमि की गीता-
मधुर प्रणय के गीत!
आहार पोखर ताल तलैया,
झूमे वर्धा झूमे गैया,
तन का थिरकन,मन का सरगम-
घर घर गूंजे ता-ता थैया ;
ह्रदय-ह्रदय में उत्सव जागे-
भूलें विगत अतीत!
यही प्रणय की रीत!
नये टिकोरे डाली- डाली,
बांस झूम कर देते ताली,
पकी रहर में धंसती जाती-
नवल शशक की पांत निराली ;
आपस में हिल मिल कर नाचे-
जन मन की मधु प्रीत!
यही प्रणय की रीत!
कृषक- कंठ नव-गीत जगाए,
घर में गैया भोर रम्भाए,
शुक-पिक,पी-खग हियरा वेधे-
चंचल नयना भर-भर आए,
नई फसल में रहे तरंगित-
जीवन का संगीत ;
यही प्रणय की रीत!