भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नदी / मृदुला शुक्ला" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला शुक्ला |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:39, 7 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
हमें भ्रम है
शिखर से उतर सागर की ओर
एक लम्बी यात्रा पर होती है नदी
नदी हमेशा होती है
किसी अजाने की तलाश में
भरती जाती है रास्ते भर के गड्ढे गड़हियां
तोड़ कर तटबंध खुद को उलीच कर अंजुरी से,
बंधी होने पर सागर के मोहपाश में
जारी रहता है
नदी का बहना बंध कर तटबंधो में भी
तटबंध ठिठके खड़े होते हैं घाटों पर
नीचे तक आ गई
ऊपर की सीढ़ियों से सटे हुए..
नदी जानती है
ठहरने का अर्थ
हमेशा ठहराव नहीं
न ही भटकने का अर्थ है रास्ता भूल जाना
कठिन है नदी होना
बहुत कठिन है
समझना नदी का होना