भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक कोमल लड़की / प्रज्ञा रावत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रज्ञा रावत |अनुवादक=जो नदी होती...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 34: पंक्ति 34:
 
कविता की उम्मीद  
 
कविता की उम्मीद  
 
करना बेमानी होगा।  
 
करना बेमानी होगा।  
चुपचाप बहती नदी
 
 
बरसों से कल-कल
 
बहते-बहते थक चुकी नदी
 
पहाड़ की गोद में
 
एक दिन प्रेम भरी नींद 
 
सोना चाहती है
 
 
कोई जाओ
 
कहो पहाड़ से कि
 
नदी ज़रा शर्मीली है
 
यूँ ही चुपचाप बहती रहेगी
 
जंगलों में बीचोंबीच
 
मन्द-मन्द तड़कती
 
अन्दर ही अन्दर।
 
 
</poem>
 
</poem>

22:03, 27 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

एक कोमल लड़की
जीवन की एक बेहद
ज़रूरी कविता लिख रही है
लड़की से माँ बनती वो
संसार के ख़ूबसूरत
दृश्य को जन्म दे रही है।
उससे हौले-हौले बतियाओ
सहलाओ उसका मन अपने
मद्धिम संगीत से

एक लड़का बाहर से बिखरा-बिखरा
समेटना चाह रहा है ख़ुद को
नए-नए रंगों में
सबसे कहो थोड़ा सब्र करें

जीवन के जिस चक्रव्यूह में
फँसे सब
भागते-हाँफते
जिसे पाने के लिए हो रहे हैं
इतने बेहाल
वो ख़ूबसूरती यहाँ
आकार ले रही है
उन्हें अपने उम्र के गाने
गाने दो
उनसे इस समय किसी और
कविता की उम्मीद
करना बेमानी होगा।