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"मासूम जनवरी / सीमा संगसार" के अवतरणों में अंतर

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इतनी पीडाएँ देती हैं  
 
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जितनी की कोई भूख से तड़पता हुआ बच्चा  
 
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मरियम ने फिर से ईसा को जन्म दिया  
 
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तू भी ईशा की तरह शांत है  
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जब तुमने इस दुनिया में  
 
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पर्दार्पण किया  
 
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तब जबकि सभी रोते चीखते हैं  
 
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तुम जीसस की तरह मौन थे...
 
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इंतज़ार शब्द धूमिल पड़ गया  
 
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अचंभित होते हैं लोग  
 
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मुझे देखकर...
 
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मैं अब समझने लगी हूँ  
 
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तुम्हारी इस रहस्मय हंसी में  
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छिपे उसके मायने को  
 
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यह दुनिया जो पागल है  
 
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सामान्य को असामान्य बना देती है  
 
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जबकि ये लोग खुद अराजक हैं  
 
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तुम हँसते हो उनकी मंद बुद्धी पर  
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और / मैं भी शरीक हो जाती हूँ  
 
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तुम्हारी इस शैतानी में...
 
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मेरे बच्चे  
 
मेरे बच्चे  
एक मासूम-सी हंसी बिखेर देते हो  
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एक मासूम-सी हँसी बिखेर देते हो  
 
मेरे कंधे पर हाथ रखकर  
 
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देते हो दिलासा  
 
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मैं जीत जाऊँगा जंग  
 
मैं जीत जाऊँगा जंग  
 
एक दिन माँ!  
 
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उम्मीदों के ललछौहें सपने में  
 
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मैं अक्सर देखती हूँ  
 
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दखलंदाजी देते हुए  
 
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दाखिल हो जाते हो
 
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धडाम से...
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मेरे बच्चे,  
 
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जैसे माँ शब्द सुना मैंने  
 
जैसे माँ शब्द सुना मैंने  

11:41, 6 मार्च 2018 के समय का अवतरण


नव वर्ष का पहला महीना
नया साल नया दिन
नए लोग और इस नई दुनिया में
तुम्हारा पहला कदम...
मेरे बच्चे ।
तुम मेरी पहली कविता हो
जिसके सर्जन हेतु
पहले प्यार के मानिंद
कविता का जन्म हुआ हो,
जब पीडाएँ दुःख के साथ
सम्भोग करती हैं
वहाँ रति सुख नहीं
आत्मप्रवंचना अधिक है!
अमूर्तन शब्द
इतनी पीडाएँ देती हैं
जितनी की कोई भूख से तड़पता हुआ बच्चा
चीखने में पूर्णतः असर्थ हो...

ईसा के सलीब पर
टाँगे जाने पर
रक्त की पतली दो धार बही
और चेहरे पर निस्तब्धता थी!
मेरे बच्चे,
मरियम ने फिर से ईसा को जन्म दिया
तू भी ईसा की तरह शांत है
जब तुमने इस दुनिया में
पर्दार्पण किया
तब जबकि सभी रोते चीखते हैं
तुम जीसस की तरह मौन थे...

 २

इंतज़ार शब्द धूमिल पड़ गया
मेरे शब्दकोश से
जब तुम माँ बोलने में
असमर्थ रहे
कई वर्षों तक
मेरी आँखें पथरा गई
मेरे कान बहरे हो गए
तुम्हारे शब्द सुनने के लिए
मैं चीखती रही
पाषाण मूर्तियों के आगे
और / तुम सुनते रहे
चुपचाप मेरी रुदन
माँ शब्द की प्रतिध्वनि
टकराती रही
मंदिर के घंटों से...

 ३
 
तुमने मुझे चमत्कृत किया
अपनी असामान्य हरकतों से
लोग कहते हैं कि तू
विशेष बच्चा है
हाँ मेरे लिए तो तुम
एक नायाव तोहफा ही ठहरे
जिसने मुझे कभी
समझदार बनने ही न दिया
तुम बच्चे बने रहते हो
सोलहवें वर्ष में भी
और / मैं भी तुम्हारे साथ
बच्ची बन जाती हूँ
इस उम्र में भी!

बस्तों की दुनिया से इतर
तुम समझते हो ई॰ और अंकों की बातें
अचंभित होते हैं लोग
तुम्हारी विलक्षणता से
और / तुम हँस रहे होते हो,
मुझे देखकर...

 ४

मैं अब समझने लगी हूँ
तुम्हारी इस रहस्मय हँसी में
छिपे उसके मायने को
यह दुनिया जो पागल है
सामान्य को असामान्य बना देती है
जबकि ये लोग खुद अराजक हैं
तुम हँसते हो उनकी मंद बुद्धि पर
और / मैं भी शरीक हो जाती हूँ
तुम्हारी इस शैतानी में...

मेरे बच्चे
एक मासूम-सी हँसी बिखेर देते हो
मेरे कंधे पर हाथ रखकर
देते हो दिलासा
मैं जीत जाऊँगा जंग
एक दिन माँ!

 ५

उम्मीदों के ललछौहें सपने में
मैं अक्सर देखती हूँ
तुम्हें लम्बी छलांगे लगाते हुए
बाजों से पंजा लड़ाते हुए
अपनी दुनिया में
दखलंदाजी देते हुए
दाखिल हो जाते हो
धड़ाम से...
मेरे बच्चे,
जैसे माँ शब्द सुना मैंने
देर से ही सही
ठीक वैसे ही
मुझे यकीन है
की तुम जीत जाओगे
यह रेस भी
मैं दौड़ रही हूँ
तुम्हारे साथ–साथ
हर कदम पर
ताल से ताल मिलकर...