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"पहाड़ / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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गुरूत्‍वाकर्षण तो धरती में है
 
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फिर क्‍यों खींचते हैं पहाड़
 
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जिसे देखो
 
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उधर ही भागा जा रहा है
 
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पहाडों को भागते हैं
 
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बरस जाना पडे टकराकर
 
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पहाड़ को जाती है
 
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टकराती है ओर मुड जाती है
 
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सूरज सबसे पहले
 
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पहाड़ छूता है
 
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भेदना चाहता है उसका अंधेरा
 
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चांदनी वहीं विराजती है
 
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पड जाती है धूमिल
 
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पेडों को देखे
 
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कैसे चढे जा रहे  
 
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चढ तो कोई भी सकता है पहाड
 
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पर टिकता वही है
 
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जिसकी जडें हो गहरी  
 
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बादलों की तरह
 
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उडकर
 
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जाओगे पहाड तक  
 
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नदी की तरह
 
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उतार देंगे पहाड
 
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हाथों में मुटठी भर रेत थमा कर ।
 
हाथों में मुटठी भर रेत थमा कर ।

11:06, 1 अगस्त 2008 का अवतरण

गुरूत्‍वाकर्षण तो धरती में है

फिर क्‍यों खींचते हैं पहाड़

जिसे देखो

उधर ही भागा जा रहा है


बादल

पहाडों को भागते हैं

चाहे

बरस जाना पडे टकराकर

हवा

पहाड़ को जाती है

टकराती है ओर मुड जाती है

सूरज सबसे पहले

पहाड़ छूता है

भेदना चाहता है उसका अंधेरा

चांदनी वहीं विराजती है

पड जाती है धूमिल


पर

पेडों को देखे

कैसे चढे जा रहे

जमे जा रहे

जाकर


चढ तो कोई भी सकता है पहाड

पर टिकता वही है

जिसकी जडें हो गहरी


बादलों की तरह

उडकर

जाओगे पहाड तक

तो

नदी की तरह

उतार देंगे पहाड

हाथों में मुटठी भर रेत थमा कर ।