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"सभी का है! / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'" के अवतरणों में अंतर
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अपनी अपनी ज्योति लिये सब तारांे-से चमको,
मुक्ति-पंथ पर रोक सकेगा कौन काहे हमको?
आकाश-सभी का है!
सौ योजन से सपनों की रानी को विधुवदनी-
उतराओ न, मन की तरल तरंगों पर अपनी;
विश्वास-सभी का है!
अपनी-अपनी आग जगाओ, मधु-गुंजार करो,
अधरों को स्वर से सुलगा, गीतों से विश्व भरो;
मधुमास-सभी का है!
नेह-निमंत्रण दे नयनों से, खींचो और खिंचो,
मन का मीत चुनो, जिससे जीवन कुसुमोत्वस हो;
भुज-पाश-सभी का है!
सूरजमुखी कमल-सी मन की पंखुड़ियाँ फैला-
हँस लो चार घड़ी, जीवन का लगा मधुर मेला;
उल्लास-सभी का है!