भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आप मेरी पूछते क्यों / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:02, 13 मई 2018 के समय का अवतरण

आप मेरी पूछते क्यों-
आए जब अपनी सुनाने?

सुनूँगा, सुनता रहा हूँ
और आगे भी सुनूँगा।
कातकर ले आए हैं,
गर आप तो निश्चित बुनूँगा

भाड़ समझा है मुझे
जो आए हैं दाने भुनाने।

तौलकर लाए नहीं कुछ
मैं बताऊँ भाव कैसे,
अखाड़ों से रहा बाहर,
मैं बताऊँ दाँव कैसे?

आपके जबड़े सलामत
आपके साबुत दहाने।

मुतमइन हैं हम कि काज़ी के
अंदेशे में शहर है,
आप चुप क्यों? और कहिए
क्या ख़बर है?

ठीक हूँ जी, क्या कहा?
यूँ ही लगा मैं गुनगुनाने।