भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नागर दिन हो न सके / नईम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:12, 13 मई 2018 के समय का अवतरण
नागर दिन हो न सके नीमगाछ-छाँहों से,
दोराहे पूछ रहे बढ़कर चौराहों से!
जाना है कहाँ,
कुछ पता तो दो।
महँगाई, मौसम के,
हाल कुछ बता तो दो,
पूछ रहे भूखों की खैर चरागाहों से!
चौराहे बोले-
हम तो जुलूस रैली हैं।
कुंठित अभिव्यक्ति
किंतु अधुनातन शैली है।
प्यार नहीं बँधता अब परम्परित बाहांे से!
समय बाँस से अब भी
नप रहा किसानों में।
पगडंडी छूट गईं
गाँव घर सिवानों में!
अंधे क्यों पूछ रहे प्रश्न, किन निग़ाहों से?
दोराहे पिछड़ गए शायद चौराहों से!