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23:12, 13 मई 2018 के समय का अवतरण
दुर्योधन: सुयोधन उवाच-
सिरहाने मेरे जो टँगे हुए,
जंग-मोर्चा खाए इंद्रधनुष!
दाएँ बाएँ बाजू
पंक्तिबद्ध अनुशासन,
बंदगी बजाते ये-
शकुनि और दुःशासन।
सुविधाएँ, समझौते, दुरभि संधि-
काँख में दबाए इतिहासपुरुष!
रत्नजड़ित शिरस्त्राण
छाती पर कवच बँधे,
पछतावे के पहाड़
ढालों पर नहीं सधे!
कुरुखेते फैला बंजर पठार-
चुभते हैं अपने ही बोए कुश!
अंध दृष्टि से पनपे
नायक में खलनायक,
रनखेते हारे हम
बदल गए निर्णायक!
छलता जो रहा आज छला गया,
बिखर गया पारे जैसा पौरुष!