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23:37, 13 मई 2018 के समय का अवतरण
आज के बाद कल नहीं होगा,
प्रश्न टेढ़ा है, हल नहीं होगा।
वो जो अपनी पड़े हैं जेलों में
उनका घर-द्वार क्या कहीं होगा?
मात्र कहने से छूट जाए जो-
और कुछ हो, अमल नहीं होगा।
साँप यदि सभ्य हो गया हो तो
बात ये है, गरल नहीं होगा।
छोड़ आए हैं जिन ठिकानों को-
लौट पाना सरल नहीं होगा।
जिनके आकाश पेड़ से नीचे,
उनके डैनों में बल नहीं होगा।
हमने ऐसी क़लम लगाई है
फूल के बाद फल नहीं होगा।