भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कजली / 58 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:31, 21 मई 2018 के समय का अवतरण
दुनमुनियाँ की कजली
लोय
"पेठियन के ठैय्याँ भुय्याँ धरम तोहार लोय"-की लय
धावन लागे बादरवा मचावन लागे सोर मोर॥
मिले मोरिनी संग कलोलैं नाचैं चारो ओर मोर।
बाढ़न लागी पीर काम की जोबन कीनो जोर मोर॥
लागै नाहीं जिया सखी री बिना मिले चितचोर मोर।
बालम बसे बिदेस प्रेमघन भूले प्रेम अथोर मोर॥104॥