भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ब्रह्मपृथककरण / साहिल परमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साहिल परमार |अनुवादक=साहिल परमार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKCatDalitRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
 
मैं सदियों से शासन करता आया हूँ
 
मैं सदियों से शासन करता आया हूँ

15:48, 21 मई 2018 के समय का अवतरण

मैं सदियों से शासन करता आया हूँ
तुम्हें कुचलने के लिए
मेरा भारी होना
अनिवार्य था
मेरे साथ-साथ
मेरा ‘मैं’ भी
भारी होता गया।

भारी होता गया
तुम्हें कुचलता गया
कुचलता गया
सहसा जाग उठे तुम
बोझ महसूस होने लगा तुम्हें
तुम्हारी ओर से बढ़ा दबाव
दबाव बढ़ता गया बढता गया।

फिर मेरा हल्का होना अनिवार्य बना
‘मैं’ हल्का हल्का हल्का
होता गया
फ़िर भी प्रमाणभेद आज भी है
आगे-पीछे का भेद आज भी है
आज भी।

तुम्हें अब चलना चाहिए
तुम मेरे पीछे-पीछे चलो
समाजवाद लाने के लिए भी
जातिवाद हटाने के लिए भी
मेरी अगुआई में तुम
बालिशता करो,बालिशता नहीं है
मूर्खता करो, मूर्खता नहीं है
हंगामा करो, हंगामा नहीं है

शर्त बस यह कि तुम
मेरे पीछे-पीछे चलो
मेरे लिये मुमकिन नहीं
कि मैं
तुम्हारे हाथ में हाथ रख कर
साथ-साथ चलूँ
प्रमाणभेद आज भी बचा है
आगे-पीछे का भेद आज भी बचा है

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार