भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आँखों के पृष्ठों पर / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {KKGlobal}} | + | {{KKGlobal}} |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= कविता भट्ट | |रचनाकार= कविता भट्ट |
18:23, 18 जून 2018 का अवतरण
कहूँगी यदि-
तो कटु सत्य होगा,
प्रिय! सुनो ना !
दृष्टि उठाकर के
प्रेम -कक्षा के
कमजोर विद्यार्थी
तुम हो अभी
मेरी आँखों के पृष्ठ,
पीड़ा-संघर्ष
उद्वेग-विषाद-हर्ष
जैसे अध्याय
पढ़ने में बीतेंगे
अनेक वर्ष
और संभव है कि
पूरा जीवन
तुम पढ़ न सको
किन्तु नाटक
पढ़ने का ही करो
तुम न जगोगे
अध्यायों की खातिर,
मेरी उनींदी
मन की कलम ने
लिखे रातों को
आँखों के पृष्ठों पर
लाल अक्षर
तुम्हें लगन तो है;
किन्तु पढ़ोगे
उतना ही तुम बस
जरूरी है जो,
जग-पाठ्यक्रम में -
भोग-देह का
रोपना, जन्म देना
डूबी अब भी
लिखने में वेदना
जानती हूँ मैं-
रक्तिम अक्षरों को
कोई नहीं पढ़ेगा !
-0-