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"अजब हैरान हूँ / ज्योत्स्ना शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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समेटे दर्द बाहों में बही जाती हूँ दरिया सी ,
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बड़ी तस्कीन दे दे कर किनारे बात करते हैं ।३
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कि,इतनी ज़िल्लतें सहकर वो कैसे जी गया होगा ,
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जला दें जाल नफ़रत का शरारे बात करते हैं ।४
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हमीं से गैर सा  होकर हमारे बात करते हैं ।५
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करें हम शायरी इतनी कहाँ हम मे लियाक़त थी ,
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तुम्हारी ही दुआओं के  सहारे बात करते हैं ।६
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04:00, 6 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

यकीँ मानो कि मुझसे ये नज़ारे बात करते हैं ,
रहूँ खामोश मैं फिर भी तो सारे बात करते हैं ।१

अँधेरी रात होती है कि गम भी साथ चलते हैं ,
अजब हैरान हूँ मुझसे सितारे बात करते हैं ।२

समेटे दर्द बाहों में बही जाती हूँ दरिया सी ,
बड़ी तस्कीन दे दे कर किनारे बात करते हैं ।३

कि,इतनी ज़िल्लतें सहकर वो कैसे जी गया होगा ,
जला दें जाल नफ़रत का शरारे बात करते हैं ।४

ख़ुदा जाने कि क्या होगा वतन का हाल और अपना ,
हमीं से गैर सा होकर हमारे बात करते हैं ।५

करें हम शायरी इतनी कहाँ हम मे लियाक़त थी ,
तुम्हारी ही दुआओं के सहारे बात करते हैं ।६