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|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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<poem>
सूनी-सूनी ज़िंदगी की राह है,
भटकी-भटकी हर नज़र-निगाह है,
राह को सँवार दो,
निगाह को निखार दो,
सूनी-सूनी ज़िंदगी की राह है,<br>भटकी-भटकी हर नज़र-निगाह है,<br>राह आदमी हो तुम कि उठा आदमी को सँवार प्यार दो,<br>निगाह को निखार दो,<br><br>दुलार दो।रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो।
आदमी हो तुम कि उठा आदमी को प्यार दोहो एक फूल कल जो धूल बनके जाएगा,<br>दुलार दो।<br>आज है हवा में कल ज़मीन पर ही आएगा,रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो।<br><br>चलते व़क्त बाग़ बहुत रोएगा-रुलाएगा,ख़ाक के सिवा मगर न कुछ भी हाथ आएगा,
तुम हो एक फूल कल जो धूल बनके जाएगाज़िंदगी की ख़ाक लिए हाथ में,<br>आज है हवा बुझते-बुझते सपने लिए साथ में कल ज़मीन पर ही आएगा,<br>चलते व़क्त बाग़ बहुत रोएगा-रुलाएगारुक रहा हो जो उसे बयार दो,<br>ख़ाक के सिवा मगर न कुछ भी हाथ आएगाचल रहा हो उसका पथ बुहार दो।आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,<br><br>दुलार दो।
ज़िंदगी की ख़ाक लिए हाथ मेंयह क्या है- बस सुबह का एक नाम है,<br>बुझते-बुझते सपने लिए साथ मेंपीछे जिसके रात है और आगे जिसके शाम है,<br>रुक रहा हो जो उसे बयार दोएक ओर छाँह सघन, एक ओर घाम है,<br>चल रहा हो उसका पथ बुहार दो।<br>आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दोजलना-बुझना, बुझना-जलना सिर्फ़ जिसका काम है,<br>दुलार दो।<br><br>न कोई रोक-थाम है,
ज़िंदगी यह क्या हैख़ौफनाक- बस सुबह का एक नाम हैग़ारो-बियाबान में,<br>पीछे जिसके रात है और आगे जिसके शाम हैमरघटों के मुरदा सुनसान में,<br>एक ओर छाँह सघनबुझ रहा हो जो उसे अंगार दो, एक ओर घाम हैजल रहा हो जो उसे उभार दो,<br>जलना-बुझनाआदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो, बुझना-जलना सिर्फ़ जिसका काम है,<br>न कोई रोक-थाम है,<br><br>दुलार दो।
ख़ौफनाक-ग़ारो-बियाबान मेंज़िंदगी की आँखों पर मौत का ख़ुमार है,<br>मरघटों के मुरदा सुनसान मेंऔर प्राण को किसी पिया का इंतज़ार है,<br>बुझ रहा हो जो उसे अंगार दोमन की मनचली कली तो चाहती बहार है,<br>जल रहा हो जो उसे उभार दो,<br>आदमी हो तुम कि उठो आदमी किंतु तन की डाली को पतझर से प्यार दोहै,<br>दुलार दो।<br><br>क़रार है,
ज़िंदगी की आँखों पर मौत का ख़ुमार हैपतझर के पीले-पीले वेश में,<br>और प्राण को किसी पिया का इंतज़ार हैआँधियों के काले-काले देश में,<br>मन की मनचली कली तो चाहती खिल रहा हो जो उसे सिंगार दो,झर रहा हो जो उसे बहार हैदो,<br>किंतु तन की डाली आदमी हो तुम कि उठो आदमी को पतझर से प्यार हैदो,<br>क़रार है,<br><br>दुलार दो।
पतझर के पीले-पीले वेश मेंप्राण एक गायक है,<br>आँधियों के काले-काले देश मेंदर्द एक तराना है,<br>खिल रहा हो जन्म एक तारा है जो उसे सिंगार दोमौत को बजाता है,<br>झर रहा हो जो उसे बहार दोस्वर ही रे! जीवन है, साँस तो बहाना है,<br>आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दोकी एक गीत है जो बार-बार गाना है,<br>दुलार दो।<br><br>सबको दुहराना है,
प्राण एक गायक हैसाँस के सिसक रहे सितार परआँसुओं के गीले-गीले तार पर, दर्द एक तराना है,<br>जन्म एक तारा है चुप हो जो मौत को बजाता हैउसे ज़रा पुकार दो,<br>स्वर ही रे! जीवन हैगा रहा हो जो उसे मल्हार दो, साँस तो बहाना है,<br>आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार की एक गीत है जो बार-बार गाना हैदो,<br>सबको दुहराना है,<br><br>दुलार दो।
साँस एक चाँद के सिसक रहे सितार पर<br>बग़ैर सारी रात स्याह है,आँसुओं एक फूल के गीले-गीले तार परबिना चमन सभी तबाह है,<br>चुप हो जो उसे ज़रा पुकार दोज़िंदगी तो ख़ुद ही एक आह है कराह है,<br>गा रहा हो प्यार भी न जो उसे मल्हार दोमिले तो जीना फिर गुनाह है,<br>आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,<br>दुलार दो।<br><br>
एक चाँद के बग़ैर सारी रात स्याह है,<br>एक फूल के बिना चमन सभी तबाह है,<br>ज़िंदगी तो ख़ुद ही एक आह है कराह है,<br>प्यार भी न जो मिले तो जीना फिर गुनाह है,<br><br> धूल के पवित्र नेत्र-नीर से,<br>आदमी के दर्द, दाह, पीर से,<br>जो घृणा करे उसे बिसार दो,<br>प्यार करे उस पै दिल निसार दो,<br>आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,<br>दुलार दो।<br>रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो॥ <br><br/poem>