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दुबले पतंगी कागज़ काहरे पत्तों से घिरी कोपलउड़ता हुआ टुकड़ा नहींनोक पर आकाश उठाएप्रसूती मन कीफ़ैल जाना चाहती हैबलवती संतान हैं।संजीवनी धूप के मैदान में।विकासोन्मुख गुलाबी कलीतन, बदन, रूप औरखोलती है आँखआकार कुछ होता नहींअंगडाइयाँ लेकरपिंजड़े से निकल भागेंफिर पकड़ कर बताए कोईदिल मखमली पटल पर राज करतीं हैं।हीरे की कनीरंगीन तितली बैठती हैओस की बूँदफूल फूल पर मेरे साथदिशाओं में नानाहम बात करते रंग भरते कुसुमखिलखिला कर हंस रहे हैंमधु कलश लेकिनचहरे से चादर हटा करभर नहीं पाता कभीमंथर पवन लेजा रही हैप्यास बनी रहती है।लूट कर मकरंदशहनाइयों के स्वरों का कम्पनइच्छा काले उदधि की, तभी तोपैर आगे बढ़ गया, वर्नागहराइयों से निकल करपडा होता दक्षणीपवन की सवारी करने लगा हैअफ्रीका प्रखर किरणों से पराजित चाँदनीरात की कंदराओं जड़ शांति लेकरउड़ गई आकाश मेंजंगली जानवर।मंदिर के गुम्बदों कोचूमती पहली किरणले जाती देवता को गहननिद्रा से जगाती है दोनों हाथ बांधेदौड़ते अश्व पुजारी ने खोल दिए पटआस्था के पीछेपैर के घुँघरूकिसी अपराधी की तरह।बजने लगे नमन के भाव मेंएक कबूतर आकर बैठ गयाडोज़र है जंगल पहाड़ों कोरोशन्दान परकाट कर रास्ता बनाती है।कुछ देर गुटरगूं करता रहाविंध्याचल झुक जाता फिर उड़ गया आकाश मेंलिख गया दरोदीवार परअब सवेरा हो गया हैअगस्थ मुनि को रास्ता देने।प्रश्न जो कलरह गए थे अनुत्तरितनदी पर पुल, समुन्दर परमुंह उठाए फिरजहाज बन जातीं खड़े हैं इच्छाएँउत्तरापेक्षीलिफ्ट हैं मंजिलें चढ़ने के लिए.नई खोज नएआविष्कार प्रश्नों की जननी।आहटआकाश सुनाई दे रही हैरात को फाड़ करजो सो गईं थींदूसरा ब्रह्मांड खोजनेजाना चाहतीं चिंताएँ फिर जग गई हैं इच्छाएँ।कुछ वास्तविक कुछ काल्पनिकफिर बटोरे जारही है जिंदगीकुछ हार के गमकुछ जीत की खुशियाँसबेरा हो गया है
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