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भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
तारो माटि कालगो आवे वो, बांगड़ भड़के झुणि वो।
बयड़ि आतर ढुलगि वाजिवो, बांगड़ भड़के झुणि वो।
तारो माटि कालगो आवे वो, बांगड़ भड़के झुणि वो।
तारो माटि दीत्यो आवे वो, रेसमि भड़के झुणि वो।
तारो माटि जुवान्स्यो आवे वो, धनि भड़के झुणि वो।
बयड़ी आतर ढुलगि वाजीवो, बांगड़ भड़के झुणि वो।
- बारात में महिलाएँ गीत गाती हैं-
टेकरी की ओट में ढोलगी बजी है। बाँगड (समधन) चमक मत जाना। तेरा खसम कौन आ रहा है? बाँगड़ चकमना मत। तेरा खसम दीत्या आ रहा है, रेशमी चमकना मत। तेरा खसम जुवानसिंह आ रहा है, धनी चमकना मत।